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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मृत्युभोज

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 कविता मर गई है!  कल रात बहुत रोई थी !  द्वार पर सर पीट रही थी। किन्तु! मैं हठी उसको पूछा नहीं....  और पूछता भी क्यों? मैं असत्य लिखता था,  वो सत्य कह जाती थी ।   मैं सुप्त लिखता था,  वो जागृत कर जाती थी ।  मैं बंधन लिखता था,  वो मुक्त रह जाती थी। "मुझको" ही "मुझे" बता रही थी।  बड़ी आई आइना दिखाने वाली! हाँ! हाँ! मृत्युभोज कर दूँगा।  आख़िर ! मैं धर्मनिष्ट तो हूँ ही। Social media

सैनिक

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मैं तो वतन पर मर मिटता हूँ, सैनिक जो हूँ। तुम बताओ तुम्हारा धर्म क्या कहता हैं.. मैं तो घरबार छोड़ आता हूँ, सैनिक जो हूँ। तुम बताओ तुम्हारा परिवार क्या कहता है.. मैं तो शीश कटवा देता हूँ, सैनिक जो हूँ। तुम बताओ तुम्हारा अहंकार क्या कहता है. . मैं तो चौकीदार बन जाता हूँ, सैनिक जो हूं। तुम बताओ तुम्हारा वर्ण क्या कहता है... मैं तो जान हथेली पर रखता हूँ, सैनिक जो हूँ। तुम बताओ तुम्हारा कर्म क्या कहता है...! Tweet

चुनाव

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सूरज को लेकर रथ आता है। रथी रात भर चलता रहता होगा.. उसकी राह में भी रोड़ा पड़ता होगा! वह भी स्याह अंधेरे से घबराता होगा । वैसे भी जिसे आना होता है। वह हर हाल में आकर रहता है.. मंज़िल अपनी पाकर रहता है। हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना  सरल है। शायद! जो रह जाता है, वह सरलता को चुनता होगा..! Tweet

पर्णी

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ठीक ही तो कह रहा था। वह पर्णी; “मेरी मजबूती इसलिए कायम है, मैं आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ हूँ। और यह जुड़ाव मुझे हर ऋतुओं से होने वाले परिवर्तन को समत्व भाव से ग्रहण करने की क्षमता प्रदान करता है।” “मैं अपनी शाखों, पत्तों, फलों पर कभी  अपना स्वामित्व नहीं रखता। उनका भरण पोषण करना प्राकृतिक धर्म है। और मैं अपना धर्म सत्यता के साथ निभाता हूँ। और यही सत् मुझे एक वृक्ष के रूप में पूर्ण करता है । जड़ों से जुड़ाव मुझे प्रभुत्व स्थापित करने का भाव रखने की अनुमति नहीं देता।” उसकी बातें सुनकर। मैं उस उद्यान से नि:शब्द होकर वापस आ गया। यह पहली बार था, कि मैं किसी को धैर्य पूर्वक सुना! कहता भी क्या उस वृक्ष से?  हम तो छोटा सा पद या कुछ सफलता पा कर फूले नहीं समाते हैं! और जाने क्या क्या डींगे हाक जातें हैं! सोच रहा हूँ, अगले दिन मैं कैसे जा पाऊंगा.. मैं उस तरुवर से क्या नज़रें मिला पाऊंगा ?

मनभेद

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परेशान हूँ! शब्दों से बार बार आ जाते हैं। ज़िद्द करते हैं,लिखो हमें! उतारो कविता में। मैं बहस करता हूँ, इनसे! स्वच्छंद रहो, अपने अपने रूप में ही रहो.. जुड़कर नया रूप क्यों लेते हो? हम इंसानों से सीखो! हमारे आपसी मनभेद  लील गए सौहार्द को! फिर भी  जुड़ते नहीं, कुछ भी हो।                         Tweet
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हिम्मत चाहे हिमालय सी अडिग रखते हों, एक वक्त पर कुछ बाज़ी हारनी भी पड़ेगी। #life  

प्रेम की सत्यता

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 तुमसे दूर जाना... आसान नहीं था मेरे लिए! तुमने मेरी राह देखी, मेरे आने के आभास मात्र से तुम द्वार पर दौड़ी होगी, दिन रात चैन नहीं होगा। यह सब तो सबने देखा है लेकिन जो तुमसे दूर रहा! उसके क्या हाल रहें ये कौन देखा? क्या कोई लेखक लिखा हमारे भाव को , मन की दुविधा को? नहीं ना। दोस्तों में बैठे बैठे आचनक!किन्हीं ख्यालों में खो जाना, काम से लौटने के बाद उस डब्बे नुमा मकान में आकर अनमने मन से सो जाना, कभी खाया कभी नहीं खाया! टूटते तारे को देखकर तुझे याद करना ,तेरे भेजे ताबीज को पहन लेना ,दही चीनी खाना! जिन्हें मैं कभी अंधविश्वास कहता था!  आज उन्हें चुपचाप मानना... यह सब मैं किन शब्दों कहूं? या कोई ख़ामोशी की  भाषा हो तो बता देना!  तुमसे दूर होने का भार लिए मैं; दोस्तों संग ठहाके लगाता था, पर कभी हँसा नहीं काम अच्छे ढंग से करता था, पर कभी जिया नहीं घर आकर खाता ,सोता था ,पर कभी स्वाद, सुकून नहीं। इस समाज के बनाए मानकों पर अगर खरा नहीं उतरता तो क्या मेरे होने पर सवाल नहीं उठते, प्रेम को बदनाम नहीं करते!  क्या हम यह कालिख सह पाते! नही ना। प्रेम में हुए जो कालिदास ,देवदास! वे समाज को क्या स्मृति

चल खड़ा हो तुझसे है उसे बहुत काम।

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प्रकृति की सुन जरा बैठकर एकांत; हाथ में जो भी है, उसका कर तू सम्मान, जो नहीं है, उसकी चिंता कर अब तू दरकिनार। इस सृष्टि में, कर्म ही है प्रधान! अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर.. जीवन को सार्थक बना ए मेरे लाल। अपनी अदूरदर्शिता भरी विषमताओं, निराशाओं को कर अब तू दरकिनार.. चल खड़ा हो तुझसे है उसे बहुत काम।
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ये कैसे गली कूचे मोहल्ले हो गए सुकुं की सांस लिए अरसों हो गए  

वेदांत

पश्चिम के दर्शन से अलग क्यों है, भारतीय दर्शन! ऐसा क्या सिखाते हैं हमारे दर्शन?  तुम लोग वेदांत वेदांत करते हो क्या है वो? हमारा वेदांत क्या सिखाता है? वेदांत में पुरुष के साथ आत्मा को संगी बताया है  और पुरष व आत्मा पुरुषत्व और स्त्रीत्व को हमारे अंदर प्रतिपादित करता है। स्त्री पुरुष का केवल बाहरी शरीर अलग दिखता है, किंतु! चेतना के स्तर पर वह एक समान होता हैं। जो व्यक्ति इस एकत्व को जी गया, समझ गया... उसके सामने नग्न अवस्था में भी कोई स्त्री आ जाए  तो उस व्यक्ति में उस स्त्री को देखकर कामुकता भाव नहीं आएगा। कामुकता का भाव केवल उस स्त्री के प्रति होगा,  जिस स्त्री को उस व्यक्ति ने स्वयं अपनी अर्धांगिनी चुना हो;  तथा वह कामुकता का भाव भी उच्च स्तरीय होगा, जो इस सृष्टि के लिए हितकारी होगा। ये होती है आध्यात्मिकता। ये होती है जितेन्द्रियता। ये होती है उच्चता ,श्रेयता। हर उस सुंदरता को बिना विचलित हुए, एकत्व भाव से देखना सिखाता है, हमारा वेदांत। और इसे ही मुक्ति , कैवल्य, निर्वाण के रूप में भी देखा जाता है। इस स्तर तक पहुंचना मुश्किल होता है, नामुमकिन नहीं।
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मैं जब “ मुझे ” लिखना शुरू करूंगा तुम स्याही बनकर मेरे साथ रहना।

प्रेम

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प्रेम स्वतंत्र बंधन है।  यह स्वयं में दूसरे के होने की संभूति है,  सलीके और तरीके का एक सुंदर मिलन है। मेरा प्रेम कसमों और वादों से परे होगा,  जो मुक्त है, वो सीमित नहीं! अनंत होगा। चाँद तारों के उपमान औरों की जूठन से लगते हैं..  अब ! और मेरा किसी उपमान का मोहताज़ नहीं ! पीड़ा में पीड़ित, चोट में चोटिल होगा, प्रेम एक साथ है, जो साथ साथ होगा। Tweet  

शक्ति

तत्त्वमसि की बात कह, मेरे स्व “पुरुष” की बात कह, पुरष संगी उस आत्मा की कह, मेरे स्व तू शक्ति की बात कह। काल की कारी कोठरी में, है तू फंसा फड़फड़ाता पंछी! ए पंछी! तू खुले गगन की कह, मेरे स्व तू शक्ति की बात कह। स्थूल शरीर के मोहपाश में, है तू बंधा जीव नर नार रूपी! ए जीव! तू एकत्व की कह, मेरे स्व तू शक्ति की बात कह । तत्त्वमसि की बात कह, मेरे स्व “सारतत्व” की बात कह, बुद्धि संगी उस प्रज्ञा की कह, मेरे स्व तू शक्ति की बात कह । https://twitter.com/mmastarji/status/1614483318065737728?t=5TGkTAUdG5yqz1O0qlNMNw&s=19