तुमसे दूर जाना... आसान नहीं था मेरे लिए! तुमने मेरी राह देखी, मेरे आने के आभास मात्र से तुम द्वार पर दौड़ी होगी, दिन रात चैन नहीं होगा। यह सब तो सबने देखा है लेकिन जो तुमसे दूर रहा! उसके क्या हाल रहें ये कौन देखा? क्या कोई लेखक लिखा हमारे भाव को , मन की दुविधा को? नहीं ना। दोस्तों में बैठे बैठे आचनक!किन्हीं ख्यालों में खो जाना, काम से लौटने के बाद उस डब्बे नुमा मकान में आकर अनमने मन से सो जाना, कभी खाया कभी नहीं खाया! टूटते तारे को देखकर तुझे याद करना ,तेरे भेजे ताबीज को पहन लेना ,दही चीनी खाना! जिन्हें मैं कभी अंधविश्वास कहता था! आज उन्हें चुपचाप मानना... यह सब मैं किन शब्दों कहूं? या कोई ख़ामोशी की भाषा हो तो बता देना! तुमसे दूर होने का भार लिए मैं; दोस्तों संग ठहाके लगाता था, पर कभी हँसा नहीं काम अच्छे ढंग से करता था, पर कभी जिया नहीं घर आकर खाता ,सोता था ,पर कभी स्वाद, सुकून नहीं। इस समाज के बनाए मानकों पर अगर खरा नहीं उतरता तो क्या मेरे होने पर सवाल नहीं उठते, प्रेम को बदनाम नहीं करते! क्या हम यह कालिख सह पाते! नही ना। प्रेम में हुए जो कालिदास ,देवदास! वे समाज को क्या स्मृति