शक्ति
तत्त्वमसि की बात कह,
मेरे स्व “पुरुष” की बात कह,
पुरष संगी उस आत्मा की कह,
मेरे स्व तू शक्ति की बात कह।
काल की कारी कोठरी में,
है तू फंसा फड़फड़ाता पंछी!
ए पंछी! तू खुले गगन की कह,
मेरे स्व तू शक्ति की बात कह।
स्थूल शरीर के मोहपाश में,
है तू बंधा जीव नर नार रूपी!
ए जीव! तू एकत्व की कह,
मेरे स्व तू शक्ति की बात कह ।
तत्त्वमसि की बात कह,
मेरे स्व “सारतत्व” की बात कह,
बुद्धि संगी उस प्रज्ञा की कह,
मेरे स्व तू शक्ति की बात कह ।
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