मुलाकात
काया , माया,
और छाया से हटकर
कुछ कहना है,
तो ही मुलाकात कर।
यही तेरा केंद्र है,
व्यवहार बढ़ाने का ?
तो मुझे छोड़!
आगे बढ़..
मैं तेरे काम का नहीं।
मैं चेतना का पुजारी हूँ।
तुम बाह्य सज्जा के!
मैं सत्य सा गाढ़ा हूँ।
तुम झूठ से हल्के!
मेरा तुम्हारा क्या ही मेल।
बहुत सुंदर लिखा आपने
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 🙂
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति मास्टर जी👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएं🙏
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