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शिव

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स्वयं से बोध होगा, तभी मन शिव होगा; हटकर देह से ध्यान, चेतना की ओर लगेगा तभी मन शिव होगा। रहकर विषयों के मध्य, जीव मोहपाश से बचेगा तभी मन शिव होगा। रमाकर देह पे राख, मसान में उत्सव मनेगा तभी मन शिव होगा। हटकर मूर्त से ध्यान, अमूर्त की ओर लगेगा तभी मन शिव होगा। शून्यता का बोध होगा, तभी मन शिव होगा।

समय चक्र

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समय चक्र घूम रहा है, निरंतर आगे बढ़ रहा है। अगर इसके पीछे चले तो जैसे कारी कोठरी में  फंसा जीव भटकता-२ घायल हो जाता है; वैसे ही घायल हो जाओगे। अगर इससे आगे निकलने की जिद्द में रहे तो  इस चक्र में निर्ममता से कुचले जाओगे, और यह जीवन निरर्थक कर जाओगे। समय चक्र के साथ चलते रहिए, इससे सामंजस्य बिठाकर रखिए।  जो अपने काज हैं; चाहे छोटे, बड़े या कम, अधिक हों वह सुदृढ़ ढंग से निरंतरता के साथ करते रहिए। इस कालखंड में जो संसाधन मिले हैं, उन संसाधनों से इस सृष्टि को अच्छा दे जाइए। अगर इसमें कुछ उच्चतम ना पा पाए! बस स्वयं में अंश मात्र संतुष्टि ले पाए, तो भी वह जीवन सार्थक कहलाएगा।