जिज्ञासा
जब गौतम सब त्याग कर निकल गया था! यशोधरा को पीड़ा हुई होगी! उस पीड़ा के आसुओं से सींचा होगा स्वयं को, और बन गई होगी पुष्प। शायद उसके पुष्प बन जाने पर ही मिला हो गौतम को बुद्धत्व...! जायज है तुम्हारा डरना सखी कहीं मेरी जिज्ञासा ले ना जाये, मुझे वनों में! कहीं छोड़ ना जाऊँ मैं तुम्हें पीड़ा में..! अगर ऐसा हो सखी! तुम “उर्मिला” बन जाना, मैं “लक्ष्मण” हो जाऊँगा। वन में गया हर कोई बुद्ध नहीं बनता।