ख़ोज

 मुझे लगता है कि 

हम अपने ही पूर्वाग्रहों में खो रहे हैं!

क्या आपको भी लगता है ?


ये समय क्या हम! 

अपनी सोची हुई चीज़ों के लिए ख़र्च कर रहे हैं ?

या जो हमें सूचवाई गई चीज़ों पर ही लगे हुए हैं!

और अगर ऐसा है तो

क्या यह हमारे ही द्वारा चुनी गई गुलामी नहीं?

क्या यह हमें तनाव मुक्त जीवन जीने देगी?


कर लीजिए आज सवाल मेरे संग-संग..

थोड़ी बोरियत महसूस ज़रूर होगी, पर क्या पता! 

सवाल करते-करते ही कोई 

वाजिब सवाल मिल जाए!

जिसे पूछ लेने भर से जागृति हो जाए 

और पूरी हो जाये ख़ोज हमारी...!

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