मन
मेरे जीवन पर दृष्टिपात किया होता, तो तुम्हें विदित होता! मैं कितना व्याकुल रहता हूँ, स्वयं के भीतरी हिंसक रवैए को बाहर रोकने हेतु। यही तो कारण है मेरे एकांत का! जिसे तुम मुझसे चुराने का भरसक प्रयत्न करते हो! मेरे विरेचन की विधि का । मैं स्वयं ही दुश्मन हूँ! यह तुम्हें क्या पता ?