चल खड़ा हो तुझसे है उसे बहुत काम।

प्रकृति की सुन जरा बैठकर एकांत;
हाथ में जो भी है, उसका कर तू सम्मान,
जो नहीं है, उसकी चिंता कर अब तू दरकिनार।

इस सृष्टि में, कर्म ही है प्रधान!
अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर..
जीवन को सार्थक बना ए मेरे लाल।

अपनी अदूरदर्शिता भरी विषमताओं,
निराशाओं को कर अब तू दरकिनार..
चल खड़ा हो तुझसे है उसे बहुत काम।






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