कविता
तुम प्रेम पढ़ना चाहते थे,
बिना प्रेमी हुए।
तुम जीत पढ़ना चाहते थे,
बिना हारे हुए।
तुम विरह पढ़ना चाहते थे,
बिना दूर हुए।
कैसे करता
तुम्हारी ये आकांक्षा पूरी!
मैंने तो भावना का प्रवाह
शब्दों से कागज़ पर लिखा था।
क्या चित्र खींचेगा उसमें
मैंने यह तय नहीं किया था।
तय करता तो यह व्यापार होता
कविता नहीं।
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