संयोग

शब्दों से व्यक्त करके 

मैं मेरी भावनाओं को 

प्रदार्थ रूप नहीं दूँगा।


प्यार , नफरत , साथ

मिलन , विरह, वेदना 

यहाँ जो भी घटता है

सब संयोग मात्र है ।


शून्यता की परिधि से 

हटाकर अंतःप्रज्ञा को

नित्य रूप नहीं दूँगा ।

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