ब्रह्माण्ड

 यह ब्रह्माण्ड तो वन समान 

जहाँ अमृत भी है और विष भी है।


जो गया अपनी ज़रुरत की खोज लाया;

कोई जीवन ले आया, कोई मरण ले आया।


जिसे असंतुष्टि है, वह संतुष्टि ले आया।

जिसे संतुष्टि है, वह असंतुष्टि ले आया।


यह काल खंड का चक्र.... 

जहाँ अमितत्व भी है और अंत भी है। 


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