पाखंड

आईने सब दिखा रहे हैं,

स्वयं कोई नहीं देख रहा है।

मैं, “मैं” से ही कहता है, 

वृहत अज्ञान फ़ैला है 

इस दुनिया-जहान में!


हमारे “मैं” का

अबोध बालक

सा विराट हट है;

जो हमें ज्ञात नहीं है,

उसी का ज्ञाता बनना है। 

यह पाखंड फ़ैला है,

इस दुनिया-जहान में !



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