अब्दुल कलाम

एक बार कलाम के प्रोफ़ेसर उन्हें अपने घर लेकर गए। प्रोफ़ेसर की वाइफ ने कलाम को पानी या कुछ खाने के लिए नहीं पूछा था बल्कि अपनी नाराज़गी और ज़ाहिर कर रही थी। ( मैं यहाँ वह कहने से बच रहा हूं की उनकी नाराज़गी क्यों थी, आप समझ गए होंगे)

उस समय पानी,खाने को प्रोफ़ेसर ने ख़ुद दिया।

जब कलाम वापस जाने लगे तो प्रोफ़ेसर बोले..

“एक दिन तुम्हें मेरी वाइफ ख़ुद इनवाइट करेगी अपने हाथ का खाना खिलाने के लिए” और बाद में वैसा ही हुआ।

मेरी समझ से इस बात का मूल यह कि “अपना व्यक्तित्व इतना विराट बना लो की नफ़रत करने वालों की नफ़रत आपके व्यक्तित्व के आगे बौनी नज़र आए।”

और आपके द्वारा किए गए काज से आपकी पहले पहचान हो उसके बाद जाति, धर्म आदि से जाने।


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