ब्रह्मराक्षस

अनहद नाद और 

गूँजता निरंतर शब्द 

प्राप्त आंतरिक उपलब्धियाँ

क्या बाहर सांझा करू?

क्या यह भौतिकी प्रबुद्धजन सहज ही समझ,सुन पाएँगे!

किंतु मैं क्यों ही यह विचार कर रहा हूँ?

व्यर्थ! मन को विचलन स्थल बना रहा हूँ।

कहने दो मुझे ब्रह्मराक्षस!

मैं ऋणी तो नहीं , न मैं बाध्य हूँ...।

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